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२०१८ का चिकित्सा और शरीर विज्ञान का नोबेल पुरस्कार

२०१८ का चिकित्सा और शरीर विज्ञान का नोबेल पुरस्कार दो प्रतिरक्षा वैज्ञानिकों; क्योटो विश्वविद्यालय, जापान के प्रो. तासुको होंजो और एम. डी. एंडरसन कैंसर संस्थान, टेक्सॉस, संयुक्त राज्य अमेरिका के प्रो. जेम्स एलीसन को कैंसर के इलाज़ के लिए शरीर के प्रतिरक्षा तंत्र के नियमन प्रणाली के  इस्तेमाल के लिए दिया गया है | दोनों वैज्ञानिकों ने स्वतंत्र रूप से काम करते हुए दो अलग-अलग प्रोटीन के विरुद्ध प्रतिरक्षा-अणु (एंटीबाडी) को बनाया जिनके इस्तेमाल ने कैंसर के इलाज़ के लिए प्रतिरक्षा चिकित्सा (immunotheraphy) के विकास में एक महत्वपूर्ण योगदान दिया है |

प्रो. तासुको होंजो और  प्रो. जेम्स एलीसन

कैंसर एक ऐसी बीमारी है जो कोशिकाओं के विभाजन और उनके अंत के नियमन में बाधा आने से होती है | इसमें असामान्य कोशिकाओं का अनियंत्रित प्रसार होने लगता है और सही समय से इलाज़ न होने की स्थिति में ये तेज़ी से अन्य स्वस्थ अंगों और ऊतकों में फैल जाने (मेटास्टेटिस) की क्षमता रखते हैं जो मृत्यु का कारण होता है | कुछ कैंसर का इलाज़ विशेष दवाइयों, विकिरण-चिकित्सा अथवा शल्य-चिकित्सा के द्वारा किया जा सकता है परन्तु गंभीर रूप से विकसित और तेज़ी से फैलते हुए कैंसर का इलाज़ इनके द्वारा काफी कठिन या नामुमकिन है | इसी कारण विगत कुछ वर्षों में कई वैज्ञानिकों ने प्रतिरक्षा तंत्र को अति सक्रिय कर उनके द्वारा कैंसर कोशिकाओं को पहचान और उन्हें नष्ट करने के उपायों में गहन बुनियादी शोध पेश किये हैं |

हमारा प्रतिरक्षा तंत्र हमे जीवाणु, विषाणु इत्यादि से होने वाले कई बिमारियों से बचाता है | एक प्रकार की श्वेत रक्त कोशिकाएँ जो टी-कोशिकाएँ कहलाती हैं, वे इस प्रतिरक्षा तंत्र के मुख्य हिस्सा हैं | उन्हें टी-कोशिका इसलिए कहा जाता है क्योंकि वे बाल्यग्रंथि (थाइमॉस) में थाइमोसाइट्स से परिपक्व होते हैं | प्रतिरक्षा तंत्र की सबसे बड़ी विशेषता यह है वह स्व- और पर-कोशिकाओं में आसानी से भेद कर सकती हैं और इसके लिए टी-कोशिकाओं के सतह पर विशेष प्रकार के प्रोटीन होते हैं | कोशिकाओं के अंदर कुछ ऐसे नियंत्रक प्रोटीन होते हैं जो टी-कोशिकाओं की प्रतिरक्षा कार्य में तेज़ी लाते हैं और कुछ ऐसे भी प्रोटीन होते हैं जो इस पर रोधक का काम करते हैं|  प्रो. एलीसन और प्रो. होंजो ने ऐसे दो विभिन्न रोधक प्रोटीन पर शोध किया और उनके विरुद्ध प्रतिरक्षा-अणु (एंटीबाडी) बनाकर उनके रोधक प्रभाव को काम करने का प्रयास किया जिससे टी-कोशिकाएँ कैंसर/ट्यूमर-कोशिकाओं को आसानी से नष्ट कर सकें |

पी.डी. १ की खोज और उसका कैंसर चिकित्सा में प्रयोग

कार्यक्रमबद्ध कोशिका मृत्यु प्रोटीन १ (Programmed Cell Death Protein 1) पी.डी. १ (P.D 1)  या सी. डी. २७९ (विशिष्टीकरण के गुच्छे प्रोटीन) गुणसूत्र-२ में स्थित जीन से उत्पन्न २८८ एमिनो एसिड वाला प्रोटीन है जो टी- और बी. कोशिकाओं  की सतह-झिल्ली पर पाया जाता है | वर्ष १९९२ में प्रो. होंजो ने पी.डी. १ प्रोटीन की खोज की और उसके टी-कोशिका के प्रतिरक्षा विरुद्ध कार्य पर गहन शोध किया | उन्होंने यह पाया कि अगर पी.डी. १ पर अवरोध लगा दिया जाए तब टी-कोशिकाएँ कैंसर कोशिकाओं को पहचाने और नष्ट करने में सक्षम  हो जाती हैं | इसके लिए उन्होंने पी.डी. १ के विरुद्ध प्रतिरक्षा-अणु (एंटीबाडी) को बनाया और उसका सफलतापूर्वक प्रयोग कैंसर मरीजों की चिकित्सा में किया | इस नयी विधि से ना सिर्फ फेफड़ों के कैंसर, गुर्दे सहित कई प्रकार के कैंसर, लिम्फोमा और मेलेनोमा में मरीजों पर जादू जैसे परिणाम दिखे बल्कि अब तक लाइलाज समझे जाने वाले फैलने वाले कैंसर (मेटास्टेटिस} के इलाज़ में भी सकारात्मक प्रभाव दिखे | २०१४ में एफ.डी.ए. ने पी.डी. १ के विरुद्ध  प्रतिरक्षा-अणु पेम्ब्रोलिज़मेब (व्यापारिक नाम: कीत्रुडा) को मेलेनोमा कैंसर के अंतिम चरण के मरीजों के इलाज़ के लिए अनुमति प्रदान की| यह पहली बार था जब एफ.डी.ए. ने ऊतक प्रकार या ट्यूमर स्थल के बजाय ट्यूमर आनुवंशिकी के आधार पर कैंसर की दवा को मंजूरी दी।

पी.डी. १ के कोशिका बाह्य अंश की त्रिआयामी आणविक संरचना पेम्ब्रोलिज़मेब प्रतिरक्षा-अणु (एंटीबाडी) के साथ

सी.टी.एल.ए.-४  का कैंसर चिकित्सा में प्रयोग

कोशिकाविषी टी-लिम्फोसाइट-संबंधित प्रोटीन-४ (cytotoxic T-lymphocyte-associated protein 4 सी.टी.एल.ए.-४ CTLA-4 )  या सी. डी. १५२ (विशिष्टीकरण के गुच्छे प्रोटीन) गुणसूत्र-२ में स्थित जीन से उत्पन्न १३० एमिनो एसिड वाला द्वितय प्रोटीन हैं |  सी.टी.एल.ए.-४ प्रोटीन की खोज १९८७ में प्रो. पियरे गॉल्स्टीन ने की थी और बाद में प्रो.टक वह मक एवं प्रो. एरियन शार्प ने अपने स्वतंत्र शोध में बताया कि सी.टी.एल.ए.-४ प्रोटीन टी-कोशिका के सक्रियण के विरुद्ध नकारात्मक नियामक के रूप में कार्य करता है |  प्रो. एलीसन ने सी.टी.एल.ए.-४ के विरुद्ध प्रतिरक्षा-अणु (एंटीबाडी) को बनाया और ये पाया कि सी.टी.एल.ए.-४ के कार्य को रोकने से टी-कोशिका का अवरोध विघटित हो जाता है और प्रतिरक्षा प्रणाली कैंसर की कोशिकाओं पर हमला कर नष्ट करने में सक्षम हो जाती है | इस तरह प्रो. एलीसन ने कैंसर के इलाज़ के लिए नियमक को लक्ष्य करने वाली प्रतिरक्षा चिकित्सा (चेकपॉइंट चिकित्सा) का प्रयोग कर त्वचा के फैलने वाले (मेटास्टेटिस} कैंसर के इलाज़ में सफ़लता प्राप्त की | २०११ में एफ.डी.ए. ने सी.टी.एल.ए.-४ के विरुद्ध  प्रतिरक्षा-अणु इपिलिमुमेब (व्यापारिक नाम: येरवोय) को मेलेनोमा कैंसर के अंतिम चरण के मरीजों के इलाज़ के लिए अनुमति प्रदान की |

सी.टी.एल.ए.-४ के कोशिका बाह्य अंश की त्रिआयामी आणविक संरचना इपिलिमुमेब प्रतिरक्षा-अणु (एंटीबाडी) के साथ

एफ.डी.ए.ने अब तक नौ प्रकार के कैंसर के इलाज के लिए चार अन्य पी.डी. -1 अवरोधक प्रतिरक्षा-अणु (एंटीबाडी) को मंजूरी दे दी है। नए चिकित्सा अध्ययन से संकेत मिलता है कि संयोजन चिकित्सा, जिसमे सी.टी.एल.ए.-४ और पी.डी. १ दोनों के प्रतिरक्षा-अणु (एंटीबाडी) का एक साथ प्रयोग किया जाए तो इलाज़ और भी अधिक प्रभावशाली हो जाता है |  वर्तमान में अनेकों चिकित्सा अनुसन्धान नियमक को लक्ष्य करने वाली प्रतिरक्षा चिकित्सा (चेकपॉइंट चिकित्सा) पर चल रहे हैं जिसकी नींव प्रो. होंजो और प्रो. एलीसन ने रखी| ऐसी आशा की जाती है कि ये चिकित्सा पद्वति भविष्य में और भी अधिक कारगर सिद्ध होगी |

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