आज पापा का ७९वां जन्मदिन है। उनके हाथ पकड़ के चलना सिखा, कंधे पे बैठ कर दुनिया को देखना सिखा और उनको विचारों ने मुझमे अच्छे-बुरे को समझने की सिख दी। कभी सोच नहीं सकता था की वो एक दिन कहीं दूर चले जायेंगे पर सही में वो कहीं दूर नहीं गए हैं। ऐसा प्रतीत होता है की वो शायद मेरे मन-मष्तिक में कहीं विराजमान हैं और हर पल मेरा मार्गदर्शन करते हैं। जिन प्रतिकूल परिस्थितियों में पापा और माँ ने हम दोनों को जिस प्रकार से बड़ा किया वो संभवतः अपने आप में उनकी एक उपलब्धि ही है। आज भी जब में अपने विद्यार्थियों से विचार-विमर्श करता हूँ तब मैं पापा को हमेशा याद करता हूँ और उनका अनुसरण करने का प्रयास करता हूँ। पापा मेरे लिए सबसे महान आदर्श हैं और वे सदा रहेंगे।